NARSINGHGARH FORT
BADA MAHADEV
CHOTA MAHADEV
JAL MANDIR
NADIA PANI
GAUGHATI WATER FALLS
KODU PANI
HANUMANGADI
CHIDIKHO WILD LIFE SANCTUARY
16 KHAMB
SHAKA SHAYAMJI KI CHATRI/TEMPLE
- मध्य भारत में इसी नाम के राज्य की राजधानी, 23° 43' उत्तर और 77° 6' पूर्व में, समुद्र से 1,650 फीट ऊपर, सीहोर से 44 मील दूर स्थित है। जनसंख्या (1901), 8,778. इसकी स्थापना 1681 में नरसिंहगढ़ के पहले प्रमुख पारस राम ने इस स्थान पर की थी टोपलिया महादेव गांव का. यह शहर एक कृत्रिम झील के किनारे पर सबसे सुरम्य रूप से स्थित है, ऊपर की ऊंचाइयों पर एक किला और महल हैं। शहर में एक औषधालय, एक स्कूल, एक जेल और ब्रिटिश संयुक्त डाक और तार कार्यालय स्थित हैं।
यह शहर 300 साल से अधिक पुराना है और इसकी स्थापना 1681 में दीवान परसराम ने की थी। विभाजन के बाद रावत पारस रामजी ने अपने राज्य का नाम भगवान श्री नरसिंह (भगवान विष्णु के अवतार) के नाम पर रखा, जो उनके देवता और आराध्य देव थे। इसके बाद उन्होंने नरसिंहगढ़ शहर की स्थापना की और अपनी राजधानी वहां स्थानांतरित की और अपने आराध्य देव श्री नरसिंह भगवान का मंदिर बनवाया। उन्होंने एक तालाब बनवाया जिसे पारस राम सागर के नाम से जाना जाता है। शहर की झील पर अभी भी संस्थापक का नाम अंकित है। शाही परिवार भारत के सभी महत्वपूर्ण राजपूत शाही परिवारों के साथ प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ था। नरसिंहगढ़ राज्य को राजगढ़ के तत्कालीन शासक रावत मोहन सिंहजी के छोटे भाई पारस रामजी ने 1681 ई. में राजगढ़ राज्य से अलग कर बनाया था।
The town Narsinghgarh is dediced to lord Narsingh avatar of God Vishnu. It was founded in year 1681 by Dewan Parasram who was son of Raja Chhatar Singh of Umatwara. After partition from Sate of Rajgarh, Dewan Parasram Ji named this state in the honor of God Shree Narsingh who was worshipped as their family god also. Thus, during development of city, they also constructed a separate temple in honor of Shri Narsingh Bhagwa and also constructed a. This fort was developed by using three different fort styles i.e. Rajpur, Malwa & Mughal. This fort palace has an area of 45.323 acres of land in which built in area is more than 17700 sq. feet. Here a tank was also created and named Parasram Sagar. Rulers of Narsinghgarh fort were also Rajputs and were connected directly or indirectly with other Rajput families of India. Here is the list of rulers of Narsinghgarh:
Rawat Paras Ramji (1681-95): He was a capable ruler who established fort, temple, tank and township.
Rawat Dalel Singhji (1695): He died in year 1695 due to some issue. It was the shortest period of ruling in this dynasty.
Rawat Moti Singhji (1695 - 1751): He ruled successfully for 56 years and died in year 1751.
Rawat Khuman Singhji (1751-66): He was able ruler. During his tenure, Mughal power declined and thus was able to intensify his position in this region.
Rawat Achal Singhji (1766-95) : He married to the daughter of Maharaja of Udaipur. He was believed to be brave and wise ruler and died in year 1795.
Rawat Sobhag Singhji (1795 - 1827): Till his tenure, British forces had gained power in this region thus he had to work hard to manage balance with rising forces by doing new treaties. He is also married in same Maharaja of Udaipur family. He had illness issue due to which his son took charge of administration at early age, but died in an war against British India.
Raja Hanwant Singhji (1827 - 73): He was adopted from Batkhera by the dowager Rani of Late Rawat Saheb in year 1827. Hanuwant Singh was generous, noble & intelligent ruler with great administrative capabilities. He managed to maintain good relations with British Government and died in year 1873.
Raja Pratap Singhji (1873 - 90): After Hanuwant Singh Ji, Raja Pratap Singhji took over the control and ruled till 1873 which is a short duration. He was son or Bhawani Singhji & Rukhmani Kumari.
Raja Mehtab Singhji (1890 - 95): He was the only surviving son of Hanuwant Singhji so took over control of kingdom from year 1890 till 1895. He was popular among general public and was of helpful nature.
Raja Arjun Singhji (1895-1924): Till this time British India Government was ruling over India and thus they selected Arjun Singhji as successor from Bhatkhera. He was born in year 1887 and studied in Ajmer, Indore & Dehradun.He was having one son and three daughters. Her died in year 1924.
Maharaja Vikram Singhji (1924 - 57) : He was born in year 1909 and tookover the charge of kingdom from 23/Apr/1924. He also studied in Ajmer and Indore colleges. He maintained good image in his kingdom as kind hearted ruler who maintained good relations with other rulers of India. He was the ruler who signed the accesion to the Dominion of India in 15/Aug/1947 and signed agreement to form Madhya Bharat on 15/June/1948, along with other rulers. He died in year 1957.
Maharaja Bhanuprakash Singhji (1957): He was son of Maharah Prabhunath Singhji of Khuwankheri and adopted by Maharaha Vikram Singhji in year 1942. He was born in year 1929. After death of Vikram Singhji, Bhanuprakash took over the charge in year 17/July/1957. He was also an well educated Maharaja, studied in Ajmer, Indore and Agra. Just like many other Maharajas, he also joined politics by becoming member of Congress party and held many portfolios successfully. Later he as posted as Governor of Goa. He was also fond of sports. He died in year 2019 in Indore.
As mentioned, it is 300 years old when township was established. After partioned from State of Rajgarh, Parasram Ji built this magnificent fort to establish it as his capital of Narsinghgarh which lies in between Bhopal & Kota cities which is stratigically important location. This multi-storyed fort is spread over an area of 45.323 acres of land. Major construction was done on an area of 17700 square feet area in which 304 rooms were available for use. Here in this fort building, we can also find 4 large halls, 12 chowks and 64 verandah areas. Whole fort was constructed on an elevated plateform, at a height of 350 ft. from town level. It was the thrid biggest fort of Central India. For or Mandu and Gwalior are bigger than this fort thus we can understand its importance in this region. In his peak time, Narsinghgarh fort was counted among best forts of Parmar ruling princes of India. In night hours, once fort was lighted, its reflection comes on the water tanks which further enhances its grand look. Ffrom safety point of view, it is surrounded by hills and three lakes. Popular Jabalpur- Jaipur National Highway passes through this region. Since it is occupied by royal family till 1962, its condition is good and thus worth to visit this place.
राजगढ़ जिले के नरसिंहगढ़ में है। श्यामजी की छतरी या श्यामजी सांका मंदिर का निर्माण राजपूत शासक महाराजा श्याम सिंह खींची की पत्नी भाग्यवती द्वारा कराया गया था। इसी छतरी के पूर्व की ओर गणेश, भैरव व द्वारपाल के अंकन वाला शिव मंदिर बना हुआ है। इस छतरी को श्री देवनारायण के मंदिर के नाम से भी जाना जाती है। इस मंदिर का निर्माण 16वीं 17वीं सदी में हुआ था। स्थापत्य कला की दृष्टि से बेजोड़ l इसकी दीवार पर मालवी और राजस्थानी प्रभावों को दर्शाती सुंदर पेंटिंग हैं, मंदिर के निर्माण के लिए सुंदर और अच्छी तरह से नक्काशी किए गए पत्थरों और ईंटों का उपयोग किया गया था।क्षेत्र नरसिंहगढ़ से करीब 20 किमी दूर नेशनल हाईवे से 8 किमी अंदर कोटरा नामक ग्राम पंचायत क्षेत्र में है।
छत्री के गर्भ गृह से लेकर शिखर तक सनातन की विभिन्न धाराओं को शिल्पियों ने रेखांकित किया। किवदंती है। किवदंती है। इस छत्री का निर्माण विश्वकर्मा ने केवल एक रात में किया। निर्माण पूर्ण होने से पूर्व ही एक प्रसव पीड़िता के रुदन से विश्वकर्मा का ध्यान भंग हो गया। विश्वकर्मा ने कुपित हो भविष्य में गांव में प्रसव न होने का शाप दे डाला।
इसकी खूबसूरती के चर्चे दिल्ली तक पहुंचे तो बादशाह अकबर ने एक सिपाहसालार हाजी अली को इसकी हकीकत जानने भेजा। हाजी अली को सोलह खम्ब की खूबसूरती रास नहीं आई और उसने सोलह खम्ब तोड़ने का फरमान सुना दिया। यह बात राजा श्यामसिंह को पता लगी तो वे उससे लोहा लेने पहुंच गए। हाजी अली ने राजा श्यामसिंह को परास्त कर दिया। पति की मौत के बाद उनकी याद में रानी ने महल के सामने ये स्मारक बनवाया। स्मारक बनाने के लिए राजस्थान के कारीगरों को बुलाया गया था। इस मंदिर इतिहास की दृष्टि से भी काफी महत्व दिया गया है. बताते हैं कि इसमें पंद्रह सौ देवी-देवताओं की मूर्तियां बनी हुई हैं.
गर्भवती महिला की डिलीवरी नहीं होती
आपको जानकर हैरानी होगी कि आज भी इस गांव में गर्भवती महिला की डिलीवरी नहीं होती है. उसके पीछे का कारण ग्रामीण बताते हैं कि पीढ़ियों से उनके गांव में डिलीवरी नहीं होती क्योंकि स्वच्छता खराब होती है. डिलीवरी होने से गांव में इसलिए पूर्वजों ने भी कभी गांव में डिलीवरी नहीं होने दी और आज भी गांव में या मान्यता मानी जा रही है. जिसके चलते गांव के बाहर ही डिलीवरी की जा सके और गांव को स्वच्छ रखा जा सके.
Address Narsinghgarh, Madhya Pradesh, India 465669
Categories Hindu Temple
GPS Coordinates 23.69817,77.09373
Rajgarh district, Madhya Pradesh, India
प्राचीन श्री बैजनाथ बड़ा महादेव शिवालय श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है, लेकिन इसके आध्यात्मिक स्वरूप के साथ एक रोचक जानकारी और जुड़ी हुई है। प्रसिद्ध संत करपात्री महाराज ने सन 1960 के दशक में नरसिंहगढ़ प्रवास के दौरान शिवालय के दर्शन किए थे और बताया था कि विश्व में अलग-अलग स्थानों पर स्थापित भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों के साथ ही नरसिंहगढ़ का बैजनाथ बड़ा महादेव शिवलिंग उप ज्योतिर्लिंग है। यह स्वयंभू शिवलिंग है। श्री लक्ष्मीनारायण मंदिर झाली आश्रम के प्रबंधक पंडित राघवेंद्र शर्मा ने भास्कर कोे बताया कि करपात्री महाराज नगर प्रवास के दौरान झाली आश्रम में ही रुके थे। तब उन्होंने नगर के आध्यात्मिक महत्व और प्राचीन मंदिरों की सेवा-पूजा विधि के बारे में पंडित राघवेंद्र शर्मा के पिता पंडित पूर्णचंद्र शास्त्री से चर्चा भी की थी। पंडित शास्त्री वर्तमान में काफी वृद्ध हैं। बता दें कि बैजनाथ बड़ा महादेव शिवालय में पिछले 1 महीने से जनभागीदारी से दैनिक अखंड अभिषेक अभियान चल रहा है। इसी दौरान शिवालय से जुड़ी यह जानकारी भी सामने आई है।
सोमवती अमावस्या का पर्व आज : सोमवती अमावस्या का पर्व सोमवार को मनाया जाएगा ।इस मौके पर श्री बैजनाथ बड़ा महादेव शिवालय में दर्शनों के लिए श्रद्धालुओं का आना रविवार से ही शुरु हो गया।
अंजलि से करते थे भोजन इसलिए नाम पड़ा करपात्री महाराज
स्वामी करपात्री महाराज (1907 -1982) एक प्रसिद्ध हिंदू संत, विचारक और राजनेता थे। वे अद्वैत दर्शन के प्रचारक थे और उन्होंने सनातन धर्म के उत्थान के लिए काफी काम किया था। वे दशनामी परंपरा के संत थे और ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य के शिष्य थे। उनका नाम हरिहरानंद था लेकिन वे हमेशा अपनी अंजलि का ही उपयोग भोजन करने के लिए करते थे, इसलिए उनका नाम करपात्री महाराज पड़ा। उन्होंने सन 1948 में अखिल भारतीय राम राज्य परिषद दल की स्थापना की थी जिसने लोकसभा की कई सीटें जीती थीं। बाद में अन्य हिंदू राजनीतिक दलों की तरह इसका भी इसका भारतीय जन संघ में विलय हो गया। सनातन धर्म के लिए स्वामी करपात्री महाराज के अतुलनीय योगदान को देखते हुए उन्हें धर्म सम्राट की उपाधि दी गई थी।
जल मंदिर नरसिंहगढ़ तहसील का एक मुख्य धार्मिक स्थल है। यह मंदिर शिव भगवान जी को समर्पित है। यह मंदिर झील के बीच में बना हुआ है। इसलिए इस मंदिर को जल मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर को पशुपतिनाथ मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर बहुत सुंदर लगता है। मंदिर में शिव भगवान का, जो शिवलिंग है। वह पंचमुखी है। शिव भगवान जी की प्रतिमा के सामने नंदी भगवान जी विराजमान है। इस झील को परशुराम झील या पारसनाथ झील के नाम से जाना जाता है।,
सोलह खंभ। नाम के मुताबिक इस पुरातात्विक धरोहर में कभी पत्थर के कलात्मक 16 स्तंभ हुआ करते थे। स्थानीय मालवी बोली में कब इनका नाम सोलह खंभ हो गया, किसी को नहीं पता। लेकिन इनका अतीत बेहद गौरवशाली है।
करीब 1 हजार साल पुराने परमार कालीन स्थापत्य शिल्प का बेहद खूबसूरत यह नमूना शहर से 13 किमी दूर कोटरा गांव में मौजूद है। माना जाता है कि यह शिवालय का अधूरा कैलाश मंडप है। जिसे मध्यकालीन आक्रमण के दौरान व्यापक क्षति पहुंचाई गई। उस दौर में कोटरा बेहद समृद्ध रियासत हुआ करती थी और आज जहां नरसिंहगढ़ आबाद है, वहां घने जंगल हुआ करते थे। कोई रिहायश नहीं थी। मध्यकालीन आक्रमण ने इस पूरे इलाके का इतिहास हमेशा के लिए बदलकर रख दिया और कोटरा का दर्जा एक रियासत से नीचे उतरकर गांव में तब्दील हो गया। लेकिन इस पूरे इलाके में आज भी पुरातात्विक धरोहरों के अवशेष जहां-तहां बिखरे हुए पाए जाते हैं। आज सोलह खंभ भारतीय पुरातत्व विभाग की संपत्ति है।
Address Near Teachers Colony Narsinghgarh, Narsingarh, India
Categories Hindu Temple
GPS Coordinates 23.72045,77.09228
Rajgarh district, Madhya Pradesh, India
जय गढ़ी सरकार आस्था और श्रद्धा का अदभूत संगम,ईशान मुखी श्री बड़ी हनुमान गढ़ी प्राचीन मंदिर (सन्1681ई)
नरसिंहगढ़ का वन्य जीव अभयारण्य मप्र के 35 अभयारण्यों में से एक है। 1978 में वन प्रभाग राजगढ़ सामाजिक वानिकी के तहत स्थापित किया गया था। अभयारण्य के द्वार से शुरू करके, आप झील के किनारे गाड़ी से पहुंचना होगा । आप नदी के किनारे ट्रेक भी कर सकते हैं, जिसमें भू-भाग उतार-चढ़ाव से होता हुआ अंततः झील पर पहुंचता है। अभयारण्य एनएच 46 पर स्थित है, जो 90 किलोमीटर दूर है। भोपाल, . अपनी प्राकृतिक सुंदरता के कारण यह मालवा की सबसे खूबसूरत जगहों में से एक है, इसलिए इसे "मालवा का कश्मीर" क्षेत्र भी कहा जाता है।
इस अभयारण्य के केंद्र में "चिदिखो झील" स्थित है जो पर्यटकों के बीच आकर्षण का केंद्र है। इस अभयारण्य का निर्माण राज्य के शासकों द्वारा किया गया था और प्राचीन समय में इस अभयारण्य का उपयोग शासकों द्वारा शिकार के उद्देश्य से किया जाता था। इस अभयारण्य में विभिन्न स्थानों से प्रवासी पक्षी यहाँ पहुँचते हैं। यहां स्थित झील का विशेष स्वरूप है जिसके कारण स्थानीय लोगों ने इस झील का नाम “चिडिखो झील” रख दिया है। यहां इस अभयारण्य में हमें स्थानीय पक्षियों और प्रवासी पक्षियों की झलक देखने को मिलती है। इस अभयारण्य में राज्य पक्षी दूध राज मुख्य रूप से देखा जाता है। राष्ट्रीय पक्षी पीकॉक मुख्य रूप से इसी अभयारण्य और आसपास के क्षेत्रों में देखा जाता है। यहां की जलवायु राष्ट्रीय पक्षी पीकॉक के लिए उपयुक्त है। और इस अभयारण्य को विकसित होने का मौका मिल रहा है क्योंकि इस अभयारण्य का मयूर पार्क क्षेत्र जंगली जानवरों के लिए पर्याप्त है। गुलबाग, चीतल बड़ी संख्या में और सांभर, नीलगाय मुख्य रूप से पाए जाते हैं। हम उन्हें इस अभयारण्य में स्वतंत्र रूप से घूमते हुए देख सकते हैं। "चिदिखो झील" के पास जामुन खो, अंधियार खो, धुवाली जंगली जानवर देखे जा सकते हैं। वन्य प्राणियों की सुरक्षा एवं संरक्षण के लिए कार्य किया जाता है।
इस अभयारण में आप ट्रैकिंग भी कर सकते है जो आप बाहर से टिकट ले सकते है । आप यह पैदल और आपकी खुदकी गाड़ी से भी चिड़िखो घूम सकते है । यह आपको गाइड भी कर सकते हैं।
भगवान शिव को एक और समर्पण, छोटा महादेव मंदिर निकटता और भक्ति का संदेश देता है। इसका छोटे पैमाने का लेकिन विस्तृत लेआउट मेहमानों को परमात्मा के साथ अधिक व्यक्तिगत मुठभेड़ करने के लिए प्रोत्साहित करता है। मंदिर का शांतिपूर्ण वातावरण विचार और ध्यान के लिए एक आदर्श स्थान प्रदान करता है।
गुप्तेश्वर महादेव मंदिर नरसिंहगढ़ के आध्यात्मिक वातावरण में भक्ति का एक और स्तर प्रदान करता है। भगवान शिव का घर यह मंदिर न केवल प्रार्थना स्थल है, बल्कि एक आनंददायक दृश्य भी है। इसकी वास्तुशिल्प चुनौतियां, इसके आस-पास की प्राकृतिक सुंदरता के साथ, एक गहन अनुभव प्रदान करती हैं जो आत्मा और इंद्रियों दोनों को खिलाती है।